वफ़ा ना रास आईं..... 💔 (9)
चार पांच दिन में एक एक कर सभी मेहमान अपने अपने घर चल दिए...। अब घर पर सिर्फ घर के सदस्य ही रह गए थे....। हफ्ते के अंत में मेरी ननद और उनके पतिदेव को खाने पर बुलाया गया...। अब घर का दामाद आ रहा था तो तैयारियां तो जोरों शोरों से होनी ही थी...।
रविवार के दिन सवेरे ग्यारह बजे के आसपास वो लोग आए...। फूलों का बिछौना बनाकर उनका खुब आदर सत्कार किया गया...। चाय - नाश्ते के बाद.... दोपहर के खाने की तैयारियां की गई....।
खाने के बाद बाकी सभी तो बातों में मशगूल हो गयें पर मैं रसोईघर में ही सवेरे से लगी रहीं..।
सच कहूं तो शायद मैं किसी को याद भी नहीं थी....। मेरे साथ उस घर में ऐसा बर्ताव हो रहा था... जैसे मुझे सिर्फ काम और रसोईघर संभालने के लिए लाया गया हैं...। नाश्ता, चाय, खाना, बर्तनों की सफाई, उनका रख रखाव, रसोईघर की सफाई, घर की सफ़ाई...... जब से आई हूँ.... तब से सिर्फ ये ही तो कर रहीं थीं....। पूरा दिन घर की देखभाल और रात होतें ही पतिदेव की...।
दुख तो तब हुआ... जब घर के सदस्यों को तो छोड़ो पर पतिदेव को भी ख्याल ही नहीं रहा की..... सभी को खिलाने में.... मैंने कुछ खाया भी या नहीं...!!
एक बार भी उन्होंने इस पूरे दिन में आकर नजर उठाकर देखा तक नहीं था....।
जैसे तैसे दिन खत्म हुआ... ननद और दामाद जी रात का खाना खाने के बाद.... ढेर सारा नेक लेकर अपने घर चल दिए....।
पांच मिनट में घर पहुंचते ही ननद का रोज़ की तरह सासु जी को फोन आया...।
अब आप सोच रहें होंगे..... पांच मिनट मतलब...!!
मेरी ननद का विवाह उनकी रजामंदी से हमारे घर से आधे किलोमीटर की दूरी पर ही तो हुआ था....।
इसे शायद मेरी बदनसीबी ही कहूंगी की.... जहां एक ओर विवाह के बाद मेरी सासु जी रोजाना दिन में दो बार बेटी को फोन किया करतीं थीं.... वहीं इस पूरे हफ्ते में मेरे मायके से सिर्फ सकुशल उनके पहूंचने के बाद कोई फोन नहीं आया था....।
बीस - पच्चीस दिनों बाद मुझे पहला फोन आया ओर मुझसे बमुश्किल दो मिनट बात की गई...। मुझसे ज्यादा पतिदेव से, जेठानी से, सासु जी से बातें की गई....।
अपने आप की हौसला अफ़ज़ाई करते हुए.... मैं इन नये लोगों में, नये घर में अपने आपको पूरी तरह से ढाल चुकी थीं....। एक मशीन की भांति..... रोजाना सवेरे... साढे़ पांच बजे उठ जाना....। सबसे पहले नहा धोकर रसोईघर में छोटे देवर का टिफिन और चाय बनाना.... फिर जेठ - जेठानी को चाय देना, फिर ससुर जी और पतिदेव जी को चाय देना.... फिर सभी के लिए नाश्ता बनाना.....। नाश्ता करके सभी का काम पर चले जाना....। फिर सबसे अंत में सासु जी के लिए चाय - नाश्ता बनाना..... क्योंकि वो सभी के जाने के बाद ही उठती थीं....। सभी को चाय नाश्ता करवाकर.... रसोईघर की सफाई और बर्तन मांझना.... फिर पूरे घर में झाड़ू पोंछा करना....। इतना सब करते करते दस - ग्यारह बजते ही थे की फिर से रसोईघर की ओर रुख करना....। ससुर जी और पतिदेव जी का लंच का टिफिन जो तैयार करना होता था...।
ठीक बारह बजे साइकिल पर एक बुजुर्ग आतें थे टिफिन लेने....। उन दोनों का टिफिन भेजने के बाद फिर से रसोईघर की सफाई....। इस बीच जेठानी द्वारा धोए हुए कपड़ों को छत पर सुखाने जाने का काम....फिर वक्त पर उनको उतारकर लाने और शाम को कपडों की इस्त्री का काम.....।
पूरे दिन में जेठानी जी सिर्फ ये ही एक काम करतीं थीं.... कपड़े धोने का....। कभी कभार सब्जी काट दिया करतीं थीं...। सासु जी कुछ नहीं करतीं थीं....।
सब कुछ उनको समय पर और अच्छा बना हुआ मिलना चाहिए था....। अगर थोड़ा भी उन्नीस बीस होता तो.... वहीं पहले दिन वाला सीन रिपिट हो जाता था....।
कभी गलती पर तो कभी जानबूझकर.... ना जाने कितनी बार ऐसे ही चाय के कप और खाने की थाली मुझपर फेंकी जा चुकी थीं....। सच कहूं तो इन सबसे मैं अंदर ही अंदर बहुत सहम चुकी थीं.....। मुझे बार बार पतिदेव जी के पहली रात को बोले हुए वो अल्फाज कानों में गूंजते थे.... बचपन से सुनती आ रहीं बातें हो या सासु जी के पहले दिन बोले गए लब्ज़ हो.... इन सभी बातों ने मुझे अंदर से बिल्कुल तोड़ दिया था....।
हर रोज़ शाम को मेरी जेठानी और सासु जी बगीचे मे टहलने जाती थीं....। लेकिन इस दौरान मेरे जेठ घर पर ही होतें थे और कभी पानी तो कभी चाय तो कभी स्नेक्स (नमकीन,चिप्स) वगैरह.... कुछ ना कुछ मांगते ही रहते थे...। कुल मिलाकर बात कहूं तो मुझे काम में लगाएं रखना ही उनका मुख्य उद्देश्य होता था....। उसके बाद छह बजते ही छोटे देवर आतें थे.... फिर जेठ जी की जिम्मेदारी वो ले लेते थे....। उसके बाद सात बजे पतिदेव जी और आठ बजे ससुर जी.... एक - एक कर आतें ओर मुझे काम में लगाएं रखते....। उसके बाद रात का खाना , सभी को खिलाना, रसोईघर की सफाई..... इन सब में रात के दस - ग्यारह कब बज जातें थे पता ही नहीं चलता था....। पूरे दिन की थकान के बाद बिस्तर पर जाती थीं... हर रोज ये सोचकर की थोड़ा आराम तो मिलेगा.... पर हर रोज पतिदेव जी का अपना पति धर्म निभाने में ही मेरी हालत ओर ज्यादा खराब हो जाती थीं.....। ना पूरे दिन में एक लब्ज़ बात करते थे... ना रात को अपने धर्म को अंजाम देते वक्त....।
उनके मुंह से इतने दिनों में कभी मैंने अपना नाम तक नहीं सुना था....।
हद तो तब हो जाती थीं जब वो माहवारी के दौरान भी अपने धर्म और कर्म में लगे रहते थे...।
महीने ऐसे ही बीतते गए....। आखिर कार ना जाने कैसे मेरी माँ को मेरी याद आई और दस महीनों बाद उन्होंने मेरी सासु जी से छुट्टी मांगी आठ दिनों के लिए....। इन दस महीनों में मेरी ननद तीन बार दो -तीन दिन करके यहाँ रहकर जा चुकी थीं....।
पहले तो सासु जी ने सख्त मना कर दिया... ये कहकर की मेरी भी बेटी उन्ही दिनों में आ रहीं हैं तो यहाँ तकलीफ पड़ेगी...। पर मम्मी के जोर देने पर आखिर कार वो चार दिनों के लिए तैयार हुई.....। सच कहूं तो ये सुनकर ना जाने क्यूँ दिल को बहुत सुकून मिल रहा था....। मैं जानती थीं..... शायद मुझे वहां मेरी ननद की तरह कोई आवभगत , मान सम्मान या आराम नहीं मिलने वाला था.... पर फिर भी ना जाने क्यूँ..... एक अलग ही खुशी हो रहीं थीं..... शायद इसलिए की इन दस महीनों में मैंने कभी घर से बाहर एक कदम भी नहीं रखा था.....। दस महीनों बाद मैं इन चार दीवारों से बाहर की दुनिया देखने वालीं थीं.....।
आखिर कैसा होगा मेरा ये महीनों बाद का सफ़र..... क्या उम्मीद के विपरीत मायके में मुझे थोड़ा प्यार मिलेगा...??
जानने के लिए इंतजार किजिए अगले भाग का....।
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Gunjan Kamal
13-Mar-2024 11:03 PM
शानदार भाग
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Mohammed urooj khan
09-Mar-2024 02:09 PM
शानदार भाग 👌🏾
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Babita patel
08-Mar-2024 12:12 PM
Amazing
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